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रविवार, 13 जुलाई 2008

"मैं खुशी हूँ"

"तुम्हारे आँगन में

रोज आती हूँ मैं

....कभी प्रातः की स्वर्णिम धूप बनकर

....कभी बारिश की मुस्कुराती बूंदे बनकर

....कभी अदृश्य बयार में समाई

मधुर सुवास बनकर

....कभी रमणीय निशा में

चाँद की चांदनी बनकर

....और भी

न जाने कितने रूपों में

रहती हूँ तुम्हारे आस-पास

हमेशा....

....कितने करीब हूँ मैं तुम्हारे

....लेकिन....!

तुम्हारी नजरें

जाने क्या-क्या ढूंढती रहती है

दिन-रात

मुझे नजर अंदाज करके

....शायद....

तुम नहीं जानते

....मैं कौन हूँ...?

"मैं खुशी हूँ "

तुम्हारे अंतरमन की खुशी....."