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बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

क्षणिका...


चाह अनंत - दुखद अंत

जग सपना - नहीं अपना

खाली हाथ - कौन साथ

सुबह-शाम - किसे आराम

बहता मन - व्यर्थ जीवन

बाहर सुन्दर - विकार अंदर

असल प्रीत - हारकर जीत

धूप छांव - सम भाव

सत्य ईश्वर - शेष नश्वर

चिंता छोड़ - चिंतन जोड़.


सोमवार, 9 जून 2008

सपनों का सच


कितना मुश्किल होता है
सपनों का सच होना
और उससे भी
कहीं अधिक मुश्किल होता है
सच हुए सपनों को
उसी स्थिति में
बचाए रखना,
ऐसे में
सच होने के पहले ही
सपनों का टूट जाना
अच्छा है
क्योंकि
सपनों के सच होने के पहले
उनके टूट जाने से
उतना दुःख नहीं होता
जितना सपनों के सच होकर
उनके टूट जाने से
होता है.....