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रविवार, 13 फ़रवरी 2011

प्रेम...








प्रेम
...

जैसे किसी पुष्प पर ठहरी
ओस की बूंद...
जो अनचाहे स्पर्श से
धूल में गिरकर
खो देता है
अपना अस्तित्व...
या फिर
पवित्रता की उष्णता पाकर
उपर उठकर
पा लेता है
अमरत्व...

2 टिप्‍पणियां:

Atul Shrivastava ने कहा…

लोगों के नजरिए पर निर्भर करता है। प्‍यार तो प्‍यार ही है। यह दोनों ही रूप धर सकता है। या तो अपना अस्तित्‍व खो सकता है या अमर हो जाता है। सब कुछ आपके नजरिए पर निर्भर है।
अच्‍छी रचना।
प्रेम को लेकर मेरी एक पोस्‍ट पर नजर डालें और अपने विचार वहां रखें तो अच्‍छा लगेगा।

राजेश सिंह ने कहा…

प्रेम की अमर गाथा.