प्रेम... जैसे किसी पुष्प पर ठहरी ओस की बूंद... जो अनचाहे स्पर्श से धूल में गिरकर खो देता है अपना अस्तित्व... या फिर पवित्रता की उष्णता पाकर उपर उठकर पा लेता है अमरत्व...
लोगों के नजरिए पर निर्भर करता है। प्यार तो प्यार ही है। यह दोनों ही रूप धर सकता है। या तो अपना अस्तित्व खो सकता है या अमर हो जाता है। सब कुछ आपके नजरिए पर निर्भर है। अच्छी रचना। प्रेम को लेकर मेरी एक पोस्ट पर नजर डालें और अपने विचार वहां रखें तो अच्छा लगेगा।
"जीवन के मधुर पलों को तो लोग आसानी से अपना लेते हैं,पर कटु पलों से वे दूर भागना चाहते है....और यहीं से प्रारम्भ होती है हमारे अन्दर की कमजोरी,व्यथा,तनाव....इस व्यथा को हमें बढाना नहीं बल्कि इससे लड़ते हुए इसके पार निकलना है.... इसके लिए कविता से बढ़कर कोई हितैषी,सच्चा मित्र नहीं हो सकता. मेरे लिए कविता एक प्रयास है जिसके द्वारा मै जीवन को अधिकतम गहराई तक जान पाया हूँ..सचमुच कविता एकाकीपन को भरकर पूर्णता का अहसास करती है. मेरी कविताओं और विचारों से किसी को प्रेरणा, कोई संदेश, शान्ति मिले तो मै अपना जीवन धन्य व अपना परिश्रम सार्थक समझूंगा..."
2 टिप्पणियां:
लोगों के नजरिए पर निर्भर करता है। प्यार तो प्यार ही है। यह दोनों ही रूप धर सकता है। या तो अपना अस्तित्व खो सकता है या अमर हो जाता है। सब कुछ आपके नजरिए पर निर्भर है।
अच्छी रचना।
प्रेम को लेकर मेरी एक पोस्ट पर नजर डालें और अपने विचार वहां रखें तो अच्छा लगेगा।
प्रेम की अमर गाथा.
एक टिप्पणी भेजें