"जीवन के मधुर पलों को तो लोग आसानी से अपना लेते हैं,पर कटु पलों से वे दूर भागना चाहते है....और यहीं से प्रारम्भ होती है हमारे अन्दर की कमजोरी,व्यथा,तनाव....इस व्यथा को हमें बढाना नहीं बल्कि इससे लड़ते हुए इसके पार निकलना है.... इसके लिए कविता से बढ़कर कोई हितैषी,सच्चा मित्र नहीं हो सकता. मेरे लिए कविता एक प्रयास है जिसके द्वारा मै जीवन को अधिकतम गहराई तक जान पाया हूँ..सचमुच कविता एकाकीपन को भरकर पूर्णता का अहसास करती है. मेरी कविताओं और विचारों से किसी को प्रेरणा, कोई संदेश, शान्ति मिले तो मै अपना जीवन धन्य व अपना परिश्रम सार्थक समझूंगा..."
6 टिप्पणियां:
मौसम, मानव और मन कब बदल जाये....मै कहना चाहुंगी...और ना जाने वक़्त कब बदल जाये?
मेरे ब्लोग पर कमेन्ट के लीये बहोत बहोत शुक्रिया
किसी शायर ने कहा है…
"तुम न दिन थे न मौसम न वक्त
फ़िर भी यूं बदल जाओगे किसे यकीं था"
संभव है कि मैं सही पंक्तियां नही लिख पाया होऊंगा पर भाव कुछ यही थे जो मैने लिखा।
आपका ब्लॉग आज पहली बार देखा, अच्छा लगा।
शुभकामनाएं
स्वागत साहू जी
सुंदर, गागर में सागर जैसी रचना है. लाजवाब.fy
bahut badhiya sahu ji achcha likha hai apne. dhanyawad.
बहुत खूब , उमेशजी ।
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