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बुधवार, 25 जून 2008

...बच के...


"मौसम
मन
और
मानव...
जाने कब
बदल जाए....!"




6 टिप्‍पणियां:

रज़िया "राज़" ने कहा…

मौसम, मानव और मन कब बदल जाये....मै कहना चाहुंगी...और ना जाने वक़्त कब बदल जाये?
मेरे ब्लोग पर कमेन्ट के लीये बहोत बहोत शुक्रिया

Sanjeet Tripathi ने कहा…

किसी शायर ने कहा है…
"तुम न दिन थे न मौसम न वक्त
फ़िर भी यूं बदल जाओगे किसे यकीं था"

संभव है कि मैं सही पंक्तियां नही लिख पाया होऊंगा पर भाव कुछ यही थे जो मैने लिखा।

आपका ब्लॉग आज पहली बार देखा, अच्छा लगा।
शुभकामनाएं

36solutions ने कहा…

स्वागत साहू जी

रवि रतलामी ने कहा…

सुंदर, गागर में सागर जैसी रचना है. लाजवाब.fy

समय चक्र ने कहा…

bahut badhiya sahu ji achcha likha hai apne. dhanyawad.

अफ़लातून ने कहा…

बहुत खूब , उमेशजी ।