''जिन्दगी...! अब तू छांव नहीं रही, अब तू धूप हो गयी है मैं भी नहीं बचा सकातुम्हें छाँव से धूप होने से, अब इसमे तपन के अलावा कुछ भी नहीं, लगता है इसी धूप और तपन में जिन्दगी की सार्थकता है जीवन का कसाव है छांव में नहीं...''
"जीवन के मधुर पलों को तो लोग आसानी से अपना लेते हैं,पर कटु पलों से वे दूर भागना चाहते है....और यहीं से प्रारम्भ होती है हमारे अन्दर की कमजोरी,व्यथा,तनाव....इस व्यथा को हमें बढाना नहीं बल्कि इससे लड़ते हुए इसके पार निकलना है.... इसके लिए कविता से बढ़कर कोई हितैषी,सच्चा मित्र नहीं हो सकता. मेरे लिए कविता एक प्रयास है जिसके द्वारा मै जीवन को अधिकतम गहराई तक जान पाया हूँ..सचमुच कविता एकाकीपन को भरकर पूर्णता का अहसास करती है. मेरी कविताओं और विचारों से किसी को प्रेरणा, कोई संदेश, शान्ति मिले तो मै अपना जीवन धन्य व अपना परिश्रम सार्थक समझूंगा..."
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें