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सोमवार, 3 मार्च 2008

निशान


'' हे प्रिये !
आओ
कुछ अमिट निशान बनाये हम
इन अनजानी
रेशमी
यादगार राहों पर
ताकि
जब भी हम
यह लम्बी यात्रा पूरी करेंगें
लौट चलेंगे
अपनी आशियाने की ओर
तब यही निशान
मुस्कुराकर
हमें इन राहों की
पहचान करा सके
और हम
बिना भटकाव के
इस मुस्कान के संकेत को
अपने ह्रदय में
सहेजकर
पहुंच सकेंगे
अपनी चिर-परिचित
दुनिया में...''

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