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गुरुवार, 6 मार्च 2008

''प्रेम''-एक शाश्वत अहसास

''जब पहली बार
किसी अनछुई कली पर
गिरी होगी
ओस की पहली बूँद
तब
उस बंद कली के ह्रदय में
आविर्भाव हुआ होगा
'प्रेम' का
और उस नवप्रेम ने
चुपके से
कली का आवरण खोल
सर्वत्र बिखेर दिया होगा
अपना अदृश्य-अलौकिक सुवास
जो आज भी
अविराम
महक-महक कर
बोध करा रही है
और कराती रहेगी
प्रेम की
पवित्रता व शाश्वतता का,
अदृश्य इसलिए
ताकि कोई
उसकी पवित्रता को
भंग न कर सके
और केवल महसूस कर सके
अपनी आत्मा की गहराईओं में
युगों-युगों तक...''



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