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शुक्रवार, 7 मार्च 2008

डर

''मेरा जीवन
एक शांत नदी
मैं नहीं चाहता हूँ इसमें
कोई भी
परिवर्तन की लहरें उठाना
क्योंकि
मैं डरता हूँ
कहीं परिवर्तन की लहर से
मेरा जीवन
अशांत न हो जाए
पर
जब देखता हूँ
अपने तट पर स्थित
अडिग
बडे-बडे चट्टानों को
तब भी मैं डरता हूँ
इस बात से
की कहीं परिवर्तन के अभाव में
मेरा भी जीवन
इनकी तरह ही
ठहर कर न रह जाए,
नीरसता के बोझ से
बोझिल हो
जड़ बनकर न रह जाए
इसलिए अब
कोशिश कर रहा हूँ
इस जीवन- सरिता मे
अपनी सीमाओं के भीतर ही
परिवर्तन की
छोटी-छोटी लहरें उठाना
ताकि यह लहरें
अपनी सीमाओं को पार कर
नहीं जा सके
अन्यत्र
क्योकि
सीमाओं के पार ही
प्रारम्भ होती है
अशांत जीवन की
कभी न खत्म होने वाली
अनिश्चितता भरी
एक लम्बी यात्रा
और मैं डरता हूँ
इसी अशांत जीवन से...''

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