मेरे आंसू छटपटाते हैं
इन बन्धनों से मुक्त होकर
ह्रदय के उन्नत धरातल में
स्वछन्द विचरने के लिए
पर क्या करें....?
नहीं रही अब्
ह्रदय में वह सरसता,
भावनाओं ओर
संवेदनाओं का
वह तीव्र उफान,
सुख और दुःख का
वह अतिरेक
जो पलकों के
इन आंसुओं को
अपने धरातल तक
ले आए...''
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