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मंगलवार, 4 मार्च 2008

अभाव

पलकों के दायरे में कैद
मेरे आंसू छटपटाते हैं
इन बन्धनों से मुक्त होकर
ह्रदय के उन्नत धरातल में
स्वछन्द विचरने के लिए
पर क्या करें....?
नहीं रही अब्
ह्रदय में वह सरसता,
भावनाओं ओर
संवेदनाओं का
वह तीव्र उफान,
सुख और दुःख का
वह अतिरेक
जो पलकों के
इन आंसुओं को
अपने धरातल तक
ले आए...''

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